चार नयन समझाऊ पियाजी पर घर प्रीत मत करना भजन लिरिक्स
शाखी:
"सत्संग की आधी घडी, और सुमिरण वर्ष पचास
वर्षा बरसे एक घडी, अरहट बारा मॉस
तो सिमुरण में मन लगाइए, जैसे कामी काम में
एक पलक बिसरे नहीं, निज दिन आठो आठ"
🙏 निर्गुणी भजन लिरिक्स को विडियो के साथ पड़े समझने में आसानी रहेगी 🙏
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत ना करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
वारी रे वारी मारा सतगुरु स्वामी, दिल का भेद ना देना जी
चार कोण में रमे जोगीड़ा, बालक स्मरण रहना जी
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत मत करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
यारी तो मर्दों की यारी, क्या तिरया की यारी जी
पल में रुलावे, पल में हसावे, पल में केद करावे जी
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत मत करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
पर नारी से प्रीत ना करियो, ना लगाइयो अंगा जी
दसो सीस रावण के कट गये
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत मत करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
गगन मंडल थी गाय आई, धरणी में दूध जमायो जी
सब संतो मिल मन्थन किया, माखन जोत जलाया जी
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत मत करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
गगन मंडल में उधम धतूरा, ता अमी का वासा जी
सुगरा होय तो, भर भर पीवे नुगरा प्यासा जाता जी
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत मत करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
कहे कबीर सुनो भाई साधो, यह वात है निर्वाणी
इसी बात की करे खोजना, उसे समझना भ्रम ज्ञानी
चार नयन समझाऊ पियाजी, पर घर प्रीत मत करना जी
इसी बूंद से हिरा निपजे, सो पर घर नहीं देना जी ||टेर||
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